गुरू श्री श्री 1008 राजेश्वर भगवान का परचा व इतिहास

श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन चमत्कारी सिद्धचमत्कारी अवतारी पुरुष परम पुजनीय प्रातः स्मरणीय परम श्रदेय श्री श्री १००८ श्री राजेश्वर भगवान...

आप भी जानिए : श्री श्री १००८ श्री राजेश्वर भगवान के जीवन से जुड़े अनछुए पहलु।

जीवन परिचय:-

श्री राजारामजी महाराज का जन्म चैत्र शुल्क ९ संवत १९३९ को, जोधपुर तहसील के गाँव शिकारपुरा में, अंजना कलबी वंश की सिह खांप में एक गरीब किसान के घर हुआ था | जिस समय राजारामजी की आयु लगभग १० वर्ष थी तक राजारामजी के पिता श्री हरिरामजी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद माता श्रीमती मोतीबाई का स्वर्गवास हो गया |

माता-पिता के बाद राजारामजी बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी नंगे सन्यासियों की जमात में चले गए और आप कुछ समय तक राजारामजी अपने चाचा श्री थानारामजी व कुछ समय तक अपने मामा श्री मादारामजी भूरिया, गाँव धान्धिया के पास रहने लगे | बाद में शिकारपुरा के रबारियो सांडिया, रोटी कपडे के बदले एक साल तक चराई और गाँव की गांये भी बिना हाध में लाठी लिए नंगे पाँव २ साल तक राम रटते चराई | गाँव की गवाली छोड़ने के बाद राजारामजी ने गाँव के ठाकुर के घर १२ रोटियां प्रतिदिन व कपड़ो के बदले हाली का काम संभाल लिया | इस समय राजारामजी के होंठ केवल इश्वर के नाम रटने में ही हिला करते थे | श्री राजारामजी अपने भोजन का आधा भाग नियमित रूप से कुत्तों को डालते थे | जिसकी शिकायत ठाकुर से होने पर १२ रोटियों के स्थान पर ६ रोटिया ही देने लगे, फिर ६ मे से ३ रोटिया महाराज, कुत्तों को डालने लगे, तो ३ में से 1 रोटी ही प्रतिदिन भेजना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी भगवन अपने खाने का आधा हिस्सा कुत्तों को डालते थे |

इस प्रकार की ईश्वरीय भक्ति और दानशील स्वभाव से प्रभावित होकर देव भारती नाम के एक पहुंचवान बाबाजी ने एक दिन श्री राजारामजी को अपना सच्चा सेवक समझकर अपने पास बुलाया और अपनी रिद्धि-सिद्धि श्री राजारामजी को देकर उन बाबाजी ने जीवित समाधी ले ली |

   उस दिन ठाकुर ने विचार किया की राजारामजी को वास्तव में एक रोटी प्रतिदिन कम ही हैं और किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए ये काफी नहीं हैं अतः ठाकुर ने भोजन की मात्रा फिर से निश्चित करने के उद्धेश्य से उन्हें अपने घर बुलाया |

   शाम के समय श्री राजाराम जी इश्वर का नाम लेकर ठाकुर के यहाँ भोजन करने गए | श्री राजारामजी ने बातों ही बातों में ७.५ किलो आटे की रोटिया आरोग ली पर आपको भूख मिटने का आभास ही नहीं हुआ | ठाकुर और उनकी की पत्नी यह देख अचरज करने लगे | उसी दिन शाम से राजारामजी हाली का काम ठाकुर को सोंपकर तालाब पर जोगमाया के मंदिर में आकर राम नाम रटने लगे | उधर गाँव के लोगो को चमत्कार का समाचार मिलने पर उनके दर्शनों के लिए ताँता बंध गया |

   दुसरे दिन राजारामजी ने द्वारिका का तीर्थ करने का विचार किया और दंडवत करते हुए द्वारिका रवाना हो गए | ५ दिनों में शिकारपुरा से पारलू पहुंचे और एक पीपल के पेड़ के नीचे हजारो नर-नारियो के बिच अपना आसन जमाया और उनके बिच से एकाएक इस प्रकार से गायब हुए की किसी को पता ही नहीं लगा | श्री राजारामजी १० माह की द्वारिका तीर्थ यात्रा करके शिकारपुरा में जोगमाया के मंदिर में प्रकट हुए और अद्भुत चमत्कारी बाते करने लगे, जिन पर विश्वास कर लोग उनकी पूजा करने लग गए | राजारामजी को लोग जब अधिक परेशान करने लग गये तो ६ मास का मोन रख लिया | जब राजारामजी ने शिवरात्री के दिन मोन खोला तक लगभग ८०००० वहां उपस्थित लोगो को व्याखान दिया और अनेक चमत्कार बता

ये जिनका वर्णन जीवन चरित्र नामक पुस्तक में विस्तार से किया गया हैं |

महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे २५० क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और दो साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं |

   श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्यु भोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |    राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये ओर समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४ संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |

श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन चमत्कारी संत अवतारी पुरुष पुजनीय संत श्री श्री 1008 श्री राजारामजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1939 चैत्र सुदी नवमी को मोतीबार्इ की पवित्र कोख में हुआ । जिस समय दिव्य शिशु ने इस संसार में पदार्पण किया , उस समय कमरा अलौकिकप्रकाश से भर गया था और घंटा व शंख ध्वनि से वातावरण भकितमय हो गया था ।

प्रभु ने इस तरह संकेत दिया था कि जिस शिशु ने मोतीबार्इ की कोख से जन्म लिया है वह कोर्इ साधारण शिशु नही है- वह असाधारण बालक साक्षात परमात्मा का अंश है । माता की गोद में लेटे नवजात शिशु के चेहरे पर तेज , आंखो में अनोखी चमक और होठो पर मुस्कुराहट थी । नवजात के चेहरे में ऐसा आकर्षण था कि उस पर से निगाहें हटाने की इच्छा ही नही होती थी ।बार-बार उसे देखने का मन करता था । इस अलौकिक पुत्र को पाकर हरिंग जी और मोतीबार्इ के मन में अपार तृपित का भाव जागृत हुआ था जैसे उन्हे सब कुछ मिल गया हो । जैसे परमात्मा ने उनकी हर इच्छा पूरी कर दी हो । माता मोतीबार्इ अपने लाडले राजा बेटे पर ममता की बरसात करती रहतीं । जैसी कि परम्परा रही है-जब कोर्इ शिशु संसार में आता है तो उसके माता-पिता , उसके परिजन बच्चे के भविष्य के बारे में जानने के लिए किसी विद्वान ज्योतिषी के पास जाते है । हरिंग जी ने भी गांव के ज्योतिषी से सम्पर्क किया । ज्योतिषी ने शिशु के जन्म का समय , ग्रह , नक्षत्र आदि का अध्यन करने के बाद कहा- बालक का जन्म स्वाति नक्षत्र और मेश राशि के अति शुभ मुहुर्त में हुआ है । भगवान स्वयं बाल रूप धर कर आये है । यह बच्चा चमत्कारी होगा । भक्तों का हितकारी और संतो को उबारने वाला होगा । यह समाज को नर्इ दिशा देगा । भटके हुए प्राणियो को रास्ता दिखएगा और वंश का नाम रोशन करेगा । ज्योतिशी ने जब एक बार पुन: कहा-हरिंग जी ! यूं समझो कि इस बालक के रूप में साक्षात भगवान आपके घर -आंगन में पधारे हैं ।

बचपन के चमत्कार:- समय के साथ साथ बालक राजाराम ने पहले घुटनो चलना सीखा और फिर अपने छोटे छोटे पांवो से घर आंगन में दौड़ने फिरने लगे । एक दिन उनकी माता ने उन्हे पुआ खाने को दिया । पुआ लेकर आंगन मे आ बैठे । तभी एक कौआ उड़ता हुआ आया और बालक राजाराम के पास आ बैठा । राजाराम ने पुआ उसकी ओर बढाया जैसे ही कौआ चोच खोलकर आगे बढ़ा उन्होने अपना हाथ पीछे कर लिया । फिर तो वह राजाराम के लिए एक नया खेल बन गया । वह पुआ कौए की तरफ बढ़ाते और जब कौआ पुआ लेने के आगे बढ़ता तो हाथ पीछे कर लेते । बालक की यह लीला मां मातीबार्इ देख देखकर मुग्ध हो रही थी । उन्होने कौए को उड़ा दिया और बेटे को गोद में प्यार करने लगी । राजारामजी अपने बड़े भार्इ रधुनाथ जी के साथ खेलते थे । खेलते खेलते व बचपन मे भगवान की भकित करते हुए बालपन गुजर गया । अल्पायु मे माता-पिता के परलोक गमन को वे सहज ही स्वीकार कर नही पाये । माता-पिता के स्नेह से वंचित होने पर राजाराम बहुत रोये थे , उनके आंसू थे कि थमने का नाम नही लेते थे । माता पिता के सवर्गारोहण के उपरान्त रघुनाथ जी ने साधूवेश धारण कर घर त्यागा तो राजाराम जी ने भार्इ के विछोह को सहज स्वीकार कर लिया । ऐसे विकट समय मे उनके मामा ने सहारा दिया । मामा खूमाराम उन्हे अपने घर धाधिया गांव ले गये । सत्य तो यह है कि राजाराम जी अपने मामा के साथ धांधिया गांव गये तो जरूर थे लेकिन उनका मन हमेशा शिकारपुरा में ही रहा । शिकारपुरा की मिटटी, खेत , बावड़ी तालाब , पेड़ , पौधे सभी उन्हे अपनी ओर खींचते रहते थे ।

वैकुण्ठ यात्रा :- चमत्कारी संत अवतारी पुरुष राजारामजी की अखंड साधना भंग करने के लिए इन्द्र आदि देवताओं ने परियों को भेजा । तरह - तरह के नृत्यों एवं भाव-भगिमाओ द्वारा परियों ने परम संत राजाराम जी का ध्यान भंग करना चहा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली । यह परियों की नहीं देवराज इन्द्र की हार थी । राजाराम जी तो ध्यान में मग्न थे उन्होने अपनी सांस को रोक लिया था , यह देखकर भगवान का सिंहासन हिल उठा राजाराम जी का तप तीनों लोको को प्रभावित कर रहा था । उनके तप की चर्चा तीनों में हो रही थी । देवताओं ने परमपिता परमात्मा से निवेदन किया - प्रभु ! या तो आप राजाराम को अपने पास बुआ लें या फिर स्वयं मृत्युलोक में जाकर उन्हें दर्शन दें । प्रभु तो लीला कर रहे थे और अपने प्रिय भक्त राजाराम का तप व उसका प्रभाव परख रहे थे । फिर प्रभु के आदेश पर देवताओं ने विमान सजाया और राजाराम जी को लेने कुछ देवताओं को भेजा । उन्होने उन पर पुष्पवर्षा की राजाराम जी को विमान में बिठाया गया और पलक झपकते ही उड़ चले

प्रभु के दूतो के संग वैकुण्ठ को जाते हुए मार्ग में नरक नगरी पड़ी , जिसे देखकर राजारामजी का मन खिन्न हो गया । जो व्यकित अपने मन में दयाभाव नहीं रखता है , जो केवल अपना हित देखता है , दूसरो को दू:ख देता है और जो कोर्इ परमात्मा का नाम नहीं लेता है वह नरक भोगी होता है ।
चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजारामजी ने धर्मराज के बाद भगवान शिव के दर्शन किए । चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजारामजी ने साक्षात भगवान को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया । भगवान की अर्मत वाणी गुंजी राजाराम ! हम तुम्हारी भकित एवं संकल्प षकित से बहुत प्रसन्न है जो मांगो वही मिलेगा । चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजारामजी ने पहला वरदान स्वर्ग प्रापित का मांगा और दूसरा वरदान मांगते हुए उन्होने कहा - हे परमेश् वर ! हे जगदीश्वर ! आपसे विनम्र प्रार्थना है , मुझे ऐसा वरदान दें कि जो कोर्इ मेरे द्वार तक भी आये उसे द्वारिका दर्शन का ही फल मिले । यही निवेदन है प्रभु ।

प्रथम चमत्कारी लीला:- गांव के ठाकुर के यहां हाली का काम भी किया करते थे । वह बचपन से ही सुख-दु:ख मे समान भाव से रहा करते थे । परिश्रम करने में उन्हे आनंद आता । हाड़तोड़ मेहनत के बदले मे राजाराम को केवल दो वक्त की रोटी मिला करती थी । यह संसार का नियम है कि दुसरे का सुख किसी को अच्छा नही लगता है । राजाराम के भोजन के सुख से नार्इ सुखी नही रहता था । एक दिन नार्इ ने शिकायत कर ठाकर को कह डला कि वह हाली अन्न का नुकशान करता है । तभी राजाराम जी को भोजन के लिए घर पर आकर खाने का हुकुम दिया । तभी राजारामजी 16 सोगरे परोसने के बाद भी भुख नही मिटटी तो ठाकुर चकित रह गया । और कहा आप चमत्कारी हो । गांव के ठाकुर को दिया परसा ।

सूखे तालाब को जल से भरा व पत्थर के जहाज को तैराने का अद्भुत कार्य :- चमत्कारी संत अवतारी पुरुष राजाराम जी के तप का यश अब चारों ओर फैल गया था, उनकी निंदा करने वाले लोग भी अब खामोश थे । शिवरात्री के दिन आसपास के गांव वाले लोगो ने राजारामजी से पानी की समस्या को लेकर परेशानी बतार्इ । तो राजारामजी ने पांच कन्याओं को लेकर सूखे तालाब में उतरते चले गये । उन्होने कुएं से जल खींचकर एक एक कलश पांचो कन्याओ के सिर पर रखवाया । मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की और तालाब से बाहर की ओर चलने लगे । जैसे जैसे राजाराम जी उन कन्याओ के साथ ऊपर आते गये वैसे वैसे पीछे तालाब मे जल भरता गया । यह प्रभु भकित का चमत्कार था ।

भविष्य दृश्टा :- चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजाराम जी महाराज त्रिकालदर्षी संत थे । भविश्य में झांक लेने की उनमे अदभुत क्षमता थी । एक घटना इस सत्य को प्रमाणित करने के लिए काफी है । सांमतशाही का दौर था । देशी शासक मौज कर रहे थे , उन्हे अपनी रियासते सुरक्षित प्रतित होती थी लेकिन राजाराम जी को कही कुछ खटक रहा था । उन्हे देशी रियासतो का भविश्य अच्छा नही दिखर्इ पड़ रहा था । चमत्कारी संत अवतारी पुरुष राजाराम जी ने फुलौदी तहसील के जुड़पुरिया गांव की रहने वाली विष्नोर्इ समाज की एक महिला , जिसकी ससुराल लुणी तहसील के गांव राजपुरिया में थी से कहा था- जागीरी जाएगी , जरूर जाएगी । राजाराम जी ने जागीरी जाने की भविश्य वाणी दिन-तारिख सहित लिखकर उस महिला को दी जिसमे उन्होने लिखा कि सबको समर्पण करना होगा । वह महिला एस लिखित भविश्यवाणी को जोधपुर दरबार मे लेकर आर्इ थी । बाद में अस्सी वर्श बाद राजाराम जी की यह भविश्यवाणी अक्षरष: सत्य सिध्द हुर्इ । सभी राजे - रजवाड़ो को भारत गृहमंत्री सरदार वल्लभार्इ पटेल के समक्ष समर्पण करना पड़ा ।

गुफा का निर्माण । नि:संतानो को संतान । राम नाम की छाप । खाद बनी तम्बाकू । खारा जल मीठा हुआ । पत्थर की नाव तिरार्इ । डाकु को श्राप । पागल कुवंर का उपचार । कोढ़ व अंधेपन से मुकित । मृत को जीवन दान । सूखी लकड़ी के पुड़ बने । देवता खेले होली ।

टिप्पणियाँ

  1. Sant shree rajaram ji ek shree ram ke avtar the jinka janm aanjna kalbi samaj me hua vo bachpan se hi ram re bhakt the

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    1. अरे भाई एक साधारण संत थे, और उनको सहारा बना कर पटेल ( आंजना ) समाज का निर्माण किया गया ताकि कोई ऊंगली ना उठे, क्या पागलों जैसी बात कर रहे हो कौनसी दुनिया में हो ?? 😄

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  2. जय श्री राजेश्वर भगवान की जय हो

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  3. जय श्री राजेश्वर भगवान की जय हो

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  4. जय श्री राजेश्वर भगवान की 🙏

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  5. जय श्री राजेश्वर भगवान

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  6. Hare Krishna hare rajaram ji maharaj me apko Nat mastak namankarta hu parbhu ki jai ho

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  7. जय हो भगवान श्री राजारामजी महाराज की

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  8. जय श्री राजेश्वर भगवान री सा

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